नज़राना इश्क़ का (भाग : 04)
फरी को क्लास में देखते ही जाह्नवी के भाव बदलने लगे, हालांकि जाह्नवी को बाकी सबसे मतलब नहीं था मगर सबने मिलकर उसके खिलाफ फरी के जो कान भरे थे उसे सुनने के बाद उसे फरी से चिढ़ मचने लगी थी, मगर वह उससे बात किये बिना अपनी सीट की तरफ बढ़ गयी। उधर फरी जाह्नवी के आने से अनजान पूरी तरह पढ़ाई में लीन थी।
'ओ…! देखो इसका, इतना पढ़ रही है जैसे एक ही दिन में टॉप कर जाएगी। लगता है कुछ ज्यादा ही कान भर दिया है सबने मिलकर!' जाह्नवी मुँह बनाते हुए बुदबुदाई। उसका मन न जाने क्यों जलन और क्रोध से भरता जा रहा था।
"हे हाय! तुम कब आयी?" फरी ने उसे क्लास में देख हैरानी से पूछा और उसकी ओर अपना दाहिना हाथ बढ़ा दिया।
'देखो इसका, बन तो ऐसे रही है जैसे कुछ पता नहीं! एग्जाम आने दो सब पता चल जाएगा।' जाह्नवी ने उसकी बातों पर ध्यान न देते हुए अपने स्थान पर चुपचाप बैठी रही। जाह्नवी का रेस्पॉन्स न मिलते देख फरी ने अपना हाथ वापिस खींच लिया अब तक सभी क्लास में एंटर कर चुके थे।
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थोड़ी देर बाद
निमय और विक्रम बाहर टहलते हुए कैंटीन की ओर बढ़ रहे थे। सभी को निमय की आदत पता थी कि वो बस वही करेगा जो वो चाहे! इसलिए सभी उससे कन्नी काटकर दूरी बनाये रखते। कुछ लोग उसे फाड़ खाने वाली नजरों से घूरते मगर मजाल कि निमय अपना कीमती वक़्त उनके फालतू एक्शन्स पर रिएक्शन देकर बर्बाद करे, इससे ज्यादा अच्छा तो वह अपनी बहन के साथ गप्पे लड़ा लें। आज निमय कुछ ज्यादा ही शांत नजर आ रहा था, उसकी निगाहें झुकी हुई थी, विक्रम उछलता कूदता उसके साथ चल रहा था, वैसे तो वह निमय से बातें कर रहा था मगर निमय का ध्यान जैसे किसी और दुनिया में खोया हुआ था। वह ख्यालों में इतना डूब चुका था कि रास्ते के किनारे लगे खम्भे से कब टकराने वाला था उसे पता ही न चला। विक्रम ने जैसे ही उसे मदहोशी भरी हालत में खंभे को नजरअंदाज करते देखा उसने अपना पूरा जोर लगाकर उसे अपनी ओर खींच लिया।
"अबे..ओ! हीरोइन नहीं हूँ …!"
"....मैं तेरी..!" इससे पहले निमय ख्यालों की दुनिया से बाहर आकर अपनी बात पूरी करे, विक्रम ने उसकी बात काटते हुए लाइन पूरी की। "जब से तेरा हाथ थामा है रोज एक ही डायलॉग मारता है, मैं तो फिर भी कुछ नहीं कहता मगर ये खम्भा तेरे सिर को फोड़ के लंबा कर देता।" विक्रम ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
"अरे सॉरी भाई! बस पता ही न चला।" निमय ने खम्भे को देखते हुए कहा, उसकी आंखें एकदम लाल थी जैसे वह रात भर का सोया ना हो।
"हाये राम! कितना जुल्म किया गया है मेरे भाई पर! रात भर जगराता किया है क्या भाई?" विक्रम, निमय को देखकर उसकी हालत पर तरस खाने की एक्टिंग करता हुआ बोला।
"अब तू जानी जैसी हरकत मत कर बे! वो अकेले काफी है मेरा सिर खाने..!" निमय ने मुँह बनाया।
"अच्छा बता किसी के ख्यालों में खोया हुआ था क्या?" विक्रम शरारत करते हुए पूछा।
"अरे नहीं यार, चल अब क्लास में..!" निमय उसकी बात टालते हुए बोला।
'नहीं! नहीं! नहीं! ये बस झूठा भ्रम है, किसी को बिना जाने-पहचाने प्यार नहीं हो सकता, ये बस मामूली सा अफेक्शन होगा, मेरे और जानी के बीच कोई नहीं आ सकता। मुझे इन ख्यालों के भ्रमजाल से बाहर निकलना होगा। मैं किसी से प्यार नहीं कर सकता, मेरे दिल में किसी के लिए कोई जगह नहीं है। अरे मैंने कल ही तो देखा है उसे….! बस देखा है। शांत हो जा निमय, तू बड़ी बड़ी प्रॉब्लम्स को चुटकियों में हल कर लेता है, अभी पढ़ाई पे ध्यान दे! कूल…!' निमय का मन अपने आप से ही तर्क वितर्क करने में लगा हुआ था।
"ओये कहा खोया हुआ है यार?" विक्रम उसे फिर इस तरह सोच में डूबा हुआ देखकर बोला।
"कुछ नहीं यार बस ऐसे ही…! सेशनल एग्जाम आने वाले…!"
"तुझे कब से इन एग्जाम्स की फिक्र होने लगी भला..! देख भाई कोई बात दिल में रखने से जख्म नासूर हो जाता है, अगर तू मुझसे नहीं बोल सकता तो मत बोल, पर कम से कम खुद के साथ तो साझा कर! कहते हैं मन की बात लिख देने से मन हल्का हो जाता है, तू भी डायरी लिखा कर!" विक्रम ने उसे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा।
"अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मेरी डायरी है ना, वो! चलती फिरती डायरी। हीहीही..!" निमय ने जाह्नवी की ओर देखते हुए धीरे से कहा।
"चल छोड़ तुझसे कौन जीत सकता है भला!" विक्रम मुँह टेड़ा करते हुए बोला और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया।
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शाम को
मिसेज शर्मा बालकनी में कुर्सी लगाकर बैठी हुई थीं, निमय उनके पांव दबा रहा था और बेवजह मुस्कुराए जा रहा था।
"क्या हुआ बेटा? कोई फरमाइश है क्या? जो आज इतनी सेवा की जा रही है!" उसकी मम्मी ने हँसते हुए पूछा।
"अब क्या बिना फरमाइश के आपकी सेवा भी नहीं कर सकता।" निमय पैर दबाना छोड़कर छोटे बच्चे की तरह रूठते हुए बोला।
"देख मुझे ये वाली फीलिंग्स मत आने देना कि तू बड़ा हो गया है, जरूर कुछ न कुछ तो चल रहा है तेरे दिमाग में!" मम्मी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"आपका बेटा देवदास बनने की राह पर है मम्मी!" गेट बंद करते हुए जाह्नवी बोली।
"क्या?" मिसेज शर्मा ने दोनों हाथों से अपना मुँह ढकते हुए कहा।
"आपका बेटा आपके हाथों से फिसलने वाला है मम्मी जरा इसे संभालिए!" जाह्नवी ने निमय के सिर पर अपने हाथ में थमी किताब रखते हुए कहा।
"निमय..!" मिसेज़ शर्मा ने निमय को घूरा, एक पल को निमय सकपका गया, वह अपने सिर पर रखी किताब उठाते हुए शैतानी आँखों से जाह्नवी को घूरने लगा।
"क्यों रोज रोज झूठ बोलते रहती है करेले की छिलकी!" निमय उसके पीछे भागा।
"तू फटे बांस की बांसुरी!" जाह्नवी ने आगे आगे भागते हुए कहा।
"तू कटे घास की गठरी! तुझे तो किसी ऐसे के साथ ब्याहूँगा कि फिर दुबारा मेरे घर आने का मौका नहीं मिलेगा।" निमय धमकाते हुए बोला, अब वो जाह्नवी के बिल्कुल पास पहुँचने ही वाला था।
"देख लो मम्मी ये कालभुजंग का नौव्वा अवतार मिस्टर कौव्वा कह रहा है कि मुझे घर से धक्का देकर निकाल देगा।" जाह्नवी ने वापिस बालकनी की ओर भागते हुए कहा।
"हाये राम! मैंने ऐसा कब कहा रे मैय्या? रोज रोज कितना झूठ बोलेगी चुड़ैल! डर… भगवान से थोड़ा तो डर!" निमय अपने घुटनों पर हाथ रखकर हाँफते हुए बोला।
"अभी अभी तो बोला बे तूने! घोंचू कही का।" जाह्नवी भी उसकी नकल उतारकर जोर जोर से हाँफते हुए बोली।
"हे भगवान कौन सा अपराध किया था मैंने!" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाया।
"हे भगवान कौन सा अपराध किया था मैंने!" जाह्नवी ने मुँह बनाकर चिढ़ाते हुए कहा।
"राम राम राम..! लाज शर्म डर कुछ बचा ही नहीं है दुनिया में!" निमय उसी जगह पर पसर गया।
"हां! होती तो भाभी नहीं ला देते मेरे लिए।" जाह्नवी ने रोंदू शक्ल बनाते हुए कहा।
"अरे नौटंकी फिर आ गयी भाभी पर…! कोई ढंग के काम की बात कर लिया कर गधी!" निमय ने झल्लाते हुए कहा।
"तुझे ढंग का काम करना भी आता है क्या घोंचू!" जाह्नवी ने तंज कसा।
"हे भगवान!" निमय ने ऊपर की ओर देखते हुए हाथ जोड़ लिए।
"हे भगवती!" जाह्नवी ने भी निमय की नकल उतारते हुए कहा।
"बस बस बस! बहुत हो गया अब बस करो! अब तुम्हारे पापा आते ही होंगे, थोड़े चाय नाश्ते की तैयारी कर लो!" मिसेज़ शर्मा ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा।
"मम्मी एग्जाम्स आ गए यार..!" दोनों ने एक ही स्वर में कहा।
"मालूम है! चल चल अपनी माँ को मत सीखा, जा के नाश्ता तैयार करो समझे!" मिसेज़ शर्मा ने परेश रावल के स्टाइल में कहा।
"लो अब मम्मी पे भी मूवी का भूत चढ़ गया!" जाह्नवी अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोली।
"मम्मी तो पूरी परेश रावल हो रक्खी हैं यार!" निमय ने उनकी ओर देखते हुए नज़रे झुकाकर कहा।
"तुम लोग बस यही कर लो, तूने लगाई है सबको ये गंदी वाली लत..!" जाह्नवी ने निमय को पैर से ठोकर मारते हुए कहा। "चल वरना मम्मी का कॉमेडी मोड से विलन मोड ऑन हो जाएगा।"
"इसीलिये तो मैं उसको मनाने की कोशिश कर रहा था, मगर तूने सब चौपट कर दिया।" निमय ने मुँह बनाया।
"चल चल..! मुँह मत बना, नाश्ता बना वरना फिर पापा भी आते ही होंगे।" जाह्नवी उसे खींचते हुए किचन में ले गयी।
थोड़ी ही देर में मिस्टर शर्मा घर आ चुके थे। अपनी बाइक एक ओर उचित स्थान पर लगाकर खड़ी करते हुए मिसेज़ शर्मा की ओर बढ़ चले।
"का हो शर्माइन जी, आज बच्चे कहा हैं नहीं दिख रहे!" मिस्टर शर्मा ने इधर उधर देखते हुए पूछा।
"कुछ नहीं बस आपके लिए नाश्ता बनाने गए हैं दोनों!" मिसेज शर्मा ने कहा।
"अरे एग्जाम है यार उनका, इस टाइम तो काम न कराओ!" मिस्टर शर्मा ने रोष जताते हुए कहा।
"तो क्या करें हम? एक भी दिन काम न दो और पढ़ने को बोल दो तो फिर पूरे मुहल्ले को फ़िल्म की कहानी सुना देते हैं!" मिसेज़ शर्मा ने मुह बनाकर नाराजगी जाहिर करते हुए बोलीं।
"अरे बच्चे हैं!"
"देखिये अब उनकी ज्यादा तरफदारी न कीजिये, हम भी जानते हैं वो बच्चे हैं।" मिसेज़ शर्मा ने घुड़कते हुए कहा।
"अरे नाराज़ काहे हो रहीं हैं!" मिस्टर शर्मा ने बड़े प्यार से पुचकारा।
"आपसे नाराज होए हमारी जूती, हम काहे होने लगे भला!" होंठो पर गजब की मुस्कान सजाते हुए मिसेज़ शर्मा बोली।
"हाये…!" मिस्टर शर्मा अपने सीने पर बायीं ओर हाथ रखते हुए बोले।
"अब ज्यादा रोमांटिक ना होइए, बच्चे हैं घर पे! पचास के होने वाले हैं मगर हरकते वही की वही! जाइये स्नान आदि कर लीजिए, संध्या पूजन भी तो करनी है न!" मिसेज़ शर्मा, उन्हें धीरे से धकेलते हुए बोलीं।
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आधी रात होने को थी, जाह्नवी सो चुकी थी मगर आज निमय जाग रहा था। वह उठा, उसके हाथों में एक मोटी डायरी नजर आ रही थी, वह अपने हाथ में थमें पेन को काफी देर तक नचाता रहा, फिर उठा और जाह्नवी के सिर तक चादर खींचकर दुबारा कुर्सी पर बैठ गया। उसका मन बेचैन था, हाथ चलने की कोशिश करता मगर जैसे उसके पास कोई शब्द ही नहीं था। वह काफी देर तक यूँ ही बैठा रहा, उसकी पलकें बोझिल होने लगी। थोड़ी ही देर बाद वह जैसे नींद में खो चुका था।
"इश्क़ यूँ तो सच्चा है मगर, गुनाह है अगर ये इश्क़ है तो…!"
अचानक उसके दिमाग की दीवारों पर कुछ शब्दों ने हथौड़े की भांति प्रहार किया, वह हड़बड़ाते हुए नींद से उठा और आंख मलते हुए पेन उठा लिया।
"अब कुछ कहने की ख्वाहिश नहीं रही क्योंकि कहना बहुत कुछ है
चुप रहूं तो बताओ कैसे, समझ नहीं आता कि करना बहुत कुछ है
दिल नादान है जो उलझ गया तुमसे, बस कह दो झूठ है ये इश्क़ नहीं
अभी इश्क़ नहीं करना मुझे, इश्क़ के इलावा करना बहुत कुछ है।"
#NimAY
"मुझे नहीं पता कि मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे… जैसे उसे पाकर मुझे सब हासिल हो जाएगा, जैसे कि वही मेरी मंजिल है! वो लड़की, पगली सी.. जैसा मैंने बचपन में सपना संजोया था। ऐसा लगता है जैसे वह मेरे सपनों से उतरकर चली आयी है, मैं हर वक़्त उसके ख्यालों में खोया रहता हूँ, मजे की बात तो ये है कि अब तक बस दो दिन हुए है उसे देखे, उससे बात तक नहीं की है मैंने पर न जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे मैं उसे सदियों से जानता होऊं, उसकी आंखें मुझे जानी पहचानी सी लगती हैं। वह बिल्कुल वही है जो मेरा ख्वाब था मगर मैं उसे पाना नहीं चाहता! मेरी लाइफ में मेरी बहन के अलावा और कोई लड़की नहीं आ सकती! आई एम सॉरी मिस फरी! आई लव यू बट स्टिल कांट डू एनीथिंग!
थैंक यू डायरी! अब थोड़ा सा हल्का लग रहा है, अब मैं आराम से सो सकूंगा। मेरी बहन का मासूम सा चेहरा मेरा सुकून है, मैं उसे हर वक़्त ऐसे ही खिला खिला देखना चाहता हूँ, वो मेरी बेस्टेस्ट फ्रेंड है, अगर मेरे दिल को रत्तीभर भी तकलीफ हुई तो उसे पता चल जाता है, इसलिए मुझे मेरी बहन के लिए हर वक़्त खुश रहना है।
लव यू जानी! मेरी पगली…!
थैंक्स विक्रम! सच है अपनी बात किसी से कहने से रिलैक्स फील होता है। अब से मैं जब भी कुछ होगा तुमसे कह दिया करूँगा, है न डायरी! गुड नाईट…!
राधे राधे..!"
लिखते लिखते निमय का चेहरा खुशी से दमकने लगा, उसके होंठो पर मुस्कान फैली हुई थी, फिर उसने डायरी छुपाकर रख दिया और सोने चला गया।
क्रमशः...
shweta soni
29-Jul-2022 11:34 PM
Nice 👍
Reply
🤫
26-Feb-2022 02:09 AM
बहुत खूबसूरत कहानी, निमय ने शुरू किए जज्बातों को लिखना, देखते है कहानी आगे क्या मोड़ लेती है। बहुत खूबसूरत कहानी।
Reply
मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 12:11 PM
Bahut shukriya aapka 💜
Reply
Sandhya Prakash
25-Jan-2022 08:53 PM
nimay kahe jagrate pe tul gya, shero shayri bhi aa gyi bnde ko .. lgta h fari rajput ka asar Chad rha h
Reply
मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 12:11 PM
Thank you
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